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Thursday 13 June 2013


शिव शक्ति
शिव पुराण के अनुसार जब विराट विष्णु की नाभि से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई तो वह आश्चर्य चकित हो कर सोचने लगे की मैं कौन हूँ ? किसने मेरा निर्माण किया है ? और मुझे क्या करना चाहिए ? तब उन्हें आकाशवाणी से सुनाया गया,-'तप" अर्थात यह जानने के लिए तप करो. ब्रह्माजी ने कई वर्षों तक तप किया और उन्हें अहसास हुआ की उन्हें तपस्या के द्वारा वेदों का निर्माण और पृथ्वी पर सृष्टि का निर्माण करना है. विष्णु भी उनके सामने प्रकट हो गए और दोनों मिलकर जानने की कोशिश करने लगे कि उन्हें क्या करना चाहिए. तभी उनके सामने एक महान तेज पुंज प्रकट हुआ. दोनों ऊपर से नीचे तक जाकर उस प्रकाश स्तम्भ का आदि - अंत जानने का प्रयास करते रहे लेकिन उस प्रकाश का ओर-छोर उन्हें नहीं मिला. तब   दोनों ने हाथ जोड़ कर अदृश्य शक्ति से प्रार्थना  की ,- " हे सर्व शक्ति मान ! कृपया हमें बताये की आप कौन है ? क्यूंकि हम आपको जानने में असमर्थ हैं. कृपया ऐसे  रूप में प्रकट हों जिसे हम जान सके ." उनके प्रार्थना करने पर एक स्वर सुनायी दिया ,--'... ...." इसके साथ ही उस ज्योतिस्तम्भ में दायीं ओर अक्षर ' ' बायीं ओर अक्षर ' ' तथा मध्य में अक्षर ' ' दिखाई दिया. दायीं तरफ का प्रकाश सूर्य के प्रकाश जैसा था ;बायीं ओर का चन्द्रमा के प्रकाश जैसा और मध्य का प्रकाश रुपहला था.
जब ब्रह्मा और विष्णु उस तेज पुंज को प्रसन्न करने के लिए निरंतर प्रार्थना करते रहे तो उस प्रकाश में उन्हें  भगवान् शिव तथा माता पार्वती के दर्शन हुए. दोनों ने ब्रह्मा और विष्णु को ज्ञान का उपदेश दिया और आशीर्वाद देकर अंतर्ध्यान हो गए . भगवान शिव ज्ञान तथा वैराग्य के दाता हैं और माता पार्वती बुद्धि तथा शक्ति की दात्री है . ब्रह्मा -विष्णु को प्रकाश रूप में दर्शन देकर उन्होंने अपने समान स्तर,तथा चिरंतन सम्बन्ध का उपदेश दिया. वे अर्धनारीश्वर रूप में मनुष्यों और देवताओ ,राक्षस और गन्धर्व आदि से आज भी पूजित हैं.

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