लक्ष्मी से श्रापित
विष्णु
एक बार भगवान् विष्णु को तपस्या करते देख और समाधि में स्थित पाकर ब्रह्माजी ने पूछा ,-"प्रभु ! आप जगत के स्वामी और सभी जीवों के एक मात्र शासक हैं .फिर आप क्यों तपस्या कर रहे हैं?भगवान् श्री हरि ने कहा ,-"सावधान हो कर सुनो .संसार रचने
,पालने और संहार करने की योग्यता हमें जिन से मिली है वह शक्ति देवी है .हम सभी शक्ति के सहारे ही अपने कार्य में सफल होते हैं . उस शक्ति के अधीन होकर ही मैं शेषनाग की शैया पर सोता हूँ .मैं सदा तप करने में लगा रहता हूँ .उस शक्ति के शासन से कभी मुक्त नहीं रह सकता .मुझे सब प्रकार से शक्ति के अधीन रहना पड़ता है. उन्ही भगवती शक्ति का मैं निरंतर ध्यान करता हूँ .इन भगवती शक्ति से बढ़कर कोई दूसरा देवता नहीं है. सृष्टि के पालन करने वाले देव विष्णु का यह कहना उनकी वास्तविक स्थिति को स्पष्ट करता है की शक्ति जो स्त्री स्वरूपा है वही पुरुषों के अस्तित्व का आधार है.
एक बार युद्ध से थके हुए भगवान् विष्णु वैकुण्ठ लोक में पद्मासन लगा कर बैठे हुए थे .उनके धनुष पर डोरी चढ़ी हुई थी और धनुष को भूमि पर टिका कर वह उसके सहारे अलसाने लगे. इनके दर्शन के लिए आये देवता सोचने लगे की किस तरह उन्हें नींद से जगाया जाए ?शिवजी ने कहा ,-"यद्यपि किसी को नींद से जगाना उचित नहीं है तब भी यग्य संपन्न करने के लिए इन्हें जगा देना चाहिए
." ब्रह्माजी ने इस उद्देश्य से एक कीड़ा उत्पन्न किया.उन्होंने सोचा की कीड़ा धनुष की तांत को काट देगा तो धनुष के तनते ही विष्णु जी जाग जायेंगे. लेकिन भय से डरा कीड़ा बोला ,-"मै भगवान् की नींद भंग कैसे कर सकूँगा
?प्राणी स्वार्थ के कारण ही नीच काम करते हैं.यदि इसमें मेरा कोई निजी काम बनने वाला हो तो ही मैं एसा करूँगा." ब्रह्माजी ने कहा ,-"सुनो हम तुम्हे यग्य में भाग देंगे ." ब्रह्मा जी से आश्वासन पा कर कीड़े ने धनुष की डोर को काट दिया.प्रत्यंचा कटते ही धनुष की दूसरी ओर की डोर भी ढीली हो गयी. बड़े जोर से शब्द हुआ और हर तरफ अँधेरा छा गया. देवता भी घबरा गए. उसी समय भगवान् विष्णु का मस्तक कुंडल और मुकुट के साथ कट कर उड़ चला. जब अँधेरा मिटा तब देवताओं ने देखा की भगवान् विष्णु का धड़ उनके सामने पड़ा था .सब लोग आश्चर्य और भय से जड़ हो गए. ब्रह्माजी ने सब को देवी भगवती से प्रार्थना करने की सलाह दी. सब देवताओं ने ब्रह्म विद्या रूपिणी देवी की हार्दिक स्तुति की. देवताओं से स्तुति सुन कर देवी प्रसन्न हो गयी और सबके सामने अपने दिव्य रूप में प्रकट हो गयीं. उन्होने आकाशवाणी के माध्यम से कहा ,-"देवताओं ! चिंता मत करो. इस जगत में कुछ भी अकारण नहीं होता.
श्री हरि के मस्तक कटने का कारण सुनो. एक बार हरि एकांत में लक्ष्मी के साथ थे. लक्ष्मी के मुख को देख कर उन्हें हंसी आ गयी. लक्ष्मी ने समझा की विष्णु जी की दृष्टि में मेरा मुख कुरूप सिद्ध हो गया है इसी लिए वह हंस रहे हैं . एसा सोच कर लक्ष्मी को क्रोध आगया. व्याकुल लक्ष्मी के मूंह से निकल पड़ा,-''तुम्हारा यह मस्तक गिर जाए". इसी से इनका यह मस्तक इस समय क्षीर सागर में लहरा रहा है. दूसरा कारण है की हयग्रीव नामक दैत्य ने सरस्वती नदी के तट पर तपस्या कर मेरी तामसी शक्ति से वरदान प्राप्त किया है की हयग्रीव के हाथ से ही उसकी मृत्यु हो. ब्रह्मा जी अब घोड़े का सर काट कर विष्णुजी के सर पर लगादें फिर हयग्रीव भगवान् उस दैत्य का वध करेंगे . इस प्रकार देवी के आदेश के अनुसार देवताओं ने एक घोड़े का सर काटा और भगवान् विष्णु के कटे हुए धड़ से जोड़ दिया.
भगवान् विष्णु नए सर के साथ जीवित हुए और उनके इस रूप का नाम हुआ हयग्रीव अवतार . हयग्रीव अवतार मे उन्होंने हयग्रीव दैत्य का वध किया और देवताओं का दुःख दूर किया. इस प्रकरण से पत्नी के द्वारा भगवान् विष्णु तक के श्रापित होने का इतिहास पता चलता है.
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