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Thursday 13 June 2013


श्रापित देवगुरु बृहस्पति 
 
स्वर्गलोक में देवगुरु बृहस्पति की धर्म पत्नी देवी तारा के सौन्दर्य से मोहित चंद्रदेव ने उनका अपहरण कर उनका उपभोग किया . पत्नी वियोग से कातर देवगुरु ने विललाप करते हुए देवताओं से कहा ,-"धर्म विरोधी प्राणी को ही दुःख प्राप्त होता है इसमें संशय नहीं है .जिसके घर में मधुर वचन बोलने वाली पत्नी नहीं है उसे जंगल में चले जाना चाहिए क्योंकि उसके लिए घर और जंगल एक सामान हैं .जिस घर में स्त्री है, वही घर हैकेवल घर को घर नहीं कहते .क्योंकि स्त्री ही घर है .जिस प्रकार यग्य दक्षिणा के बिना कर्म का फल नहीं दे सकता ,सुनार सोने के बिना गहने नहीं बना सकता ;कुम्हार मिटटी के बिना बर्तन नहीं बना सकता उसी तरह पुरुष पत्नी के बिना सभी कामो में अशक्त रहता है .जितनी भी क्रियाएं है वे स्त्री के द्वारा ही संपन्न होती है .घर स्त्री से ही बनते है .गृहस्थ को सुख स्त्री से ही प्राप्त होता है .सभी मंगल स्त्री से ही होते है . सारा संसार स्त्री मूलक है . प्रसन्नता स्त्री से ही प्राप्त होती है .रथ का चालक जैसे रथी होता है वैसे ही घर की संचालिका स्त्री होती है .सभी रत्नों में स्त्री रत्न प्रधान है .जैसे बिना जल के कमल होता है वैसे ही बिना गृहणी के घर होता है ..." अनेक प्रकार से शोक मानते देवगुरु को देखकर सभी देवता उनकी समस्या का कारण और समाधान ढूँढ़ रहे थे . तब ब्रह्मा जी ने उसका कारण बताया,-"जो दूसरे को दुःख देता है उसे भगवान् कृष्ण सबके शासक होने के नाते दुःख स्वयं देते हैं .सभी देवगन भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा का पालन करते है .बृहस्पति ,उतथ्य ,और संवरत ये तीनो ऋषि अंगीरा के पुत्र है. संवरत  तपस्वी होकर निरंतर भगवानका ध्यान करता है .उतथ्य की पत्नी  का जो उस समय गर्भिणी  एवं काम भावना से रहित थी इन्होने काम के वश होकर अपहरण किया था .बृहस्पति जगद्गुरु शिव के गुरु पुत्र है अतः उन्हें (भगवान् शिव को ) यह वृत्तान्त बता देना चाहिए ." शिवजी के पास जाकर देवगुरु ने स्वयं कहा ,-"हे ईश्वर ! यद्यपि मेरा समाचार कहने योग्य नहीं है तब भी कहूँगा .क्योंकि कर्म के फल का भोग किये बिना कर्म का नाश नहीं होता .मनुष्य का स्वभाव पिछले जन्म  के कर्म के अनुसार ही होता है ..." जब देगुरु ने अपना समाचार शिवजी को सुनाया तो शिवजी के हाथ से जपमाला गिर गयी ,आँखे क्रोध से लाल हो गयीं और वह सर झुका कर कांपने लगे . उन्होंने देवगुरु को श्रीकृष्ण का मन्त्र ,-'ओह्म श्रीम ,ह्रीम,कलीम कक्रिश्नाये नमः 'दिया . बाद मे युद्ध के उपरान्त  देवगुरु को उनकी पत्नी वापस प्राप्त हो गयी .(प्रकृति खंड ब्रह्म वैवर्त पुराण ) मत्स्य पुराण के अनुसार देवगुरु बृहस्पति ने अपने भाई की पत्नी ममता जो उस समय गर्भिणी थी के साथ यौन सम्बन्ध स्थापित किया था. जब ममता के गर्भ में पल रहे पुत्र ने बृहस्पति के इस कर्म की निंदा कर उन्हें रोकना चाहा  तो बृहस्पति ने उस गर्भस्थ शिशु को अंधे होने का श्राप दे दिया और बृहस्पति से जो पुत्र उत्पन्न हुआ , वह उनके भाई के क्षेत्र में उनके वीर्य से उत्पन्न होने के कारण भारद्वाज कहलाया जिसे ममता ने पुत्र पाने की इच्छा से यग्य कर रहे एक  राजा  को दे दिया . ममता के गर्भ से जन्म लेने वाले  उसके पति के शिशु का नाम था अन्धतमा जिन्होंने गाय की सेवा कर के आँखों की ज्योति प्राप्त की और ऋषि गौतम के नाम से जाने गए. बृहस्पति के इसी कर्म के कारण उनकी पत्नी काभी चन्द्रमा द्वारा  अपहरण हुआ और उन्हें दुःख प्राप्त हुआ .

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