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Thursday 13 June 2013


प्रणय का अर्थ 
संस्कृत देववाणी है जिसके प्रत्येक अक्षर में अध्यात्मिक शक्ति समाहित है .प्रणव शब्द ब्रहम ,विष्णु और महेश की तीनों शक्तियों का एकीकरण कर मनुष्य को उस मंत्र को जपने का मार्ग देता है जिस से उसकी चेतना शरीर ,मन ,बुद्धि से परे पूर्ण दिव्य प्रकाश और आनंद की स्थिति को पाती है . 'प्र 'धातु प्रकृति या प्रकट होने की अवस्था का प्रतीक; ' 'बीज या आत्मा का और ' 'शून्य अवस्था का प्रतीक है.जिस मंत्र के जप से शरीर से जुडी आत्मा शून्य अवस्था का आनंद पाती है वह प्रणव या ओह्म है .प्रणय शब्द मेंकी जगहहै . ‘का अर्थ है जो . अर्थात जिस सम्बन्ध में मनुष्य को अपनी आत्मा का प्रतिबिम्ब दिखे वह सम्बन्ध ही प्रणय का सम्बन्ध है क्यूंकि भगवान् शिव तंत्रशास्त्र में माता पार्वती से बार बार कहते हैं की देवी तुम मेरा ही स्वरूप हो .भगवान् श्रीकृष्ण भी अपनी अर्धांगिनी से बार बार कहते हैं की हम और तुम में कोई भेद नहीं है ......हम सदा सब जगह एक हैं. पुराण में ऐसे अनेक कथानक हैं जहां कई भाइयों ने एक स्त्री से विवाह किया और कई बहनों और स्त्रियों ने एक पुरुष से विवाह किया क्यूंकि अध्यात्मिक जागृत समाज में सम्बन्ध का आधार भावना थी ,धन, मान सामाजिक  अनुबंध या माता पिता की इच्छा पूरी करना नहीं . अध्यात्मिक रूप से उन्नत व्यक्ति अपनी आत्मा को सब प्राणियों में स्थित और सब सृष्टि को अपनी आत्मा में निहित मान कर मैं और तू  के भयानक द्वन्द से मुक्त हो जाता है और उसके लिए जीवन और मृत्यु दोनों ही आनंद की एक रस अवस्था होते है .
विवाह के विषय में भगवान् कृष्ण का मत 
भारतीय शास्त्र आठ प्रकार के विवाह सम्बन्ध बताते हैं . ब्राम्ह विवाह जिसमे कन्या द्वारा  चुने वर को बुला कर सत्कार पूर्वक बिना धन लिए दिए या स्वयंवर में संस्कार किया जाता है .आर्ष विवाह जिसमें सादगी से कन्यादान किया जाता है .देव विवाह जिसमें यज्ञ में भाग लेने आये व्यक्ति से कन्या का विवाह किया जाता है .प्राजापत्य विवाह जिसमें वर वधू के माता पिता बिना धन के आदान प्रादान के विवाह करते हैं .आसुर विवाह जिसमें लोभी माता पिता  वर वधु की भावना को ध्यान रख कर धन ले या देकर विवाह करते है .गन्धर्व विवाह जिसमें काम भाव से वर वधू स्वयं सम्बन्ध स्थापित करते हैं .राक्षस विवाह जिसमें हिंसा ,अपहरण या बल पूर्वक कन्या से सम्बन्ध स्थापित किया जाए .पैशाचिक विवाह जिसमें सोती ,पागल या नशे में उन्मत्त कन्या को दूषित किया जाए.
महाभारत में  भगवान् कृष्ण से जब युधिष्टिर ने इस विषय में प्रश्न किया तो उन्होंने  स्वयंवर को ही श्रेष्ठ बताया क्यूंकि उस सम्बन्ध में स्त्री की भावना की प्रधानता है.उन्होंने स्वयं अपने जीवन में भावना के कारण ही अपनी बहन सुभद्रा को स्वयं अर्जुन को रथ में बिठा कर लेजा कर  विवाह करने का सुझाव दिया और स्वयं भी राजकुमारियों के सन्देश पाने पर उनका अपहरण कर उन से विवाह किये .

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