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Thursday 13 June 2013


राधा -माधव का सन्देश
देवी भगवत और ब्रह्म वैवर्त पुराण में ऋषि नारद और उनके गुरु ऋषि नारायण के वार्तालाप में वर्णन है की कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर गोलोक में राधा महोत्सव बड़े धूम धाम से मनाया जा रहा था .भगवान् श्रीकृष्ण सम्यक प्रकार से राधा जी की पूजा करके रासमंडल में विराज मान थे .उनका अनुसरण करते हुए ब्रहमाजी आदि देवगणों और शौनक आदि ऋषियों ने बड़े आनंद के साथ श्रीकृष्ण पूजिता राधा की पूजा की  और विराजमान हुए .भगवान् कृष्ण को संगीत सुनाने वाली देवी सरस्वती हाथ में वीणा लेकर ताल स्वर के साथ गीत गाने लगीं . ब्रह्माजी ने प्रसन्न होकर सर्वोत्तम रत्न से बना हुआ हार उन्हें पुरूस्कार में अर्पण किया .भगवान् शिव ने उन्हें अखिल ब्रहमांड के लिए दुर्लभ  एक उत्तम मणि प्रदान की .
श्रीकृष्ण ने उन्हें कौस्तुभ मणि भेंट की . राधा ने उन्हें अमूल्य  रत्नों से निर्मित एक अनुपम हार ,भगवान् नारायण ने सुन्दर पुष्पमाला और देवी लक्ष्मी ने बहुमूल्य रत्नों के दो कुंडल उन्हें दिए . विष्णु माया ,ईश्वरी ,दुर्गा ,नारायणी और ईशाना नाम से विख्यात मूल प्रकृति ने देवी सरस्वती के अंतःकरण  में परम दुर्लभ परमात्म भक्ति प्रकट की .धर्म ने धार्मिक बुद्धि उत्पन्न करने के साथ उनकी कीर्ति विस्तृत की .अग्निदेव ने चिन्मय वस्त्र और पवन देव ने मणियों से जड़े  नूपुर प्रदान किये .इतने में ब्रह्माजी से प्रेरित होकर भगवान् शंकर श्रीकृष्ण की आराधना में पद  जिसमें रस के उल्लास को बढाने की शक्ति भरी थी ,बार बार गाने लगे . उनके सुमधुर गान को सुन कर सारे देवता मूर्छित से हो गए .ऐसा लग रहा था की जैसे सब श्रोता मात्र चित्र विचित्र पुतले  हों .बड़ी देर बाद जब भगवान् शिव का चित्ताकर्षक गान और देवी सरस्वती की वीणा के तार शांत हुए तब जाकर श्रोताओं को चेत हुआ . चेतना लोटने पर जब उन सब ने रासमंडल में सब तरफ देखा तो वहां राधा दिखीं कृष्ण . समस्त रासमंडल में सर्वत्र जल ही जल लहराता दिखा . ऐसा देख कर सभी गोप, गोपियाँ ,देवता और ऋषि  धैर्य खो बैठे  और अत्यंत उच्च स्वर से  विलाप करने लगे . उस समय ब्रह्मा जी ने ध्यान मग्न होकर तुरंत ही भगवान् श्रीकृष्ण का पुनीत विचार समझ लिया . उन्होंने जान लिया की भगवान् अपनी अर्धांगिनी के साथ जल के रूप में हर तरफ हिलोरें ले रहे थे . भगवान् श्रीकृष्ण का गुप्त आशय समझ कर सभी महाभाग देवता परम ब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगे ,-"विभो ! हमारा केवल यही अभीष्ट वर है की आप अपनी श्रीमूर्ति के हमें पुनः दर्शन करा दें . यही हमारी अभिलाषा है ." उनकी ह्रदय से निकली पुकार को सुनकर प्रभु द्रवित हो गए और उन्होंने आकाशवाणी के माध्यम से कहा,-“ देवताओं !सब का आत्मा मैं और भक्तों पर कृपा करने के लिए प्रकट होने वाली मेरी यह शक्ति तो हमेशा ही हैं .अब हम दोनों का रूप देख कर क्या करोगे ? मैं सर्वात्मा श्रीकृष्ण और मेरी स्वरूपा शक्ति राधा -हम दोनों ने ही भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए  यह जल मय विग्रह धारण किया है .सुरेश्वरों !तुम्हे मेरे और इन राधा के शरीर से क्या प्रयोजन है ? मनु ,मनुष्य ,मुनि  और वैष्णव लोग मेरे मंत्र से पवित्र हो कर मुझे देखने के लिए मेरे धाम में आयेंगे . ऐसे ही यदि तुम्हे भी स्पष्ट दर्शन की अभिलाषा हो तो प्रयत्न करो .शम्भू वहीं रह कर मेरी आज्ञा का पालन करें .विधाता ! ब्रह्म!तुम स्वयं जगद गुरु शंकर से कह दो की वे वेदों के अंगभूत परम महोहर विशिष्ट शास्त्र अर्थात तंत्र शास्त्र का निर्माण करें और उसमें सम्पूर्ण अभीष्ट फल देने वाले बहुत से अपूर्व मन्त्र उद्धृत हों .स्तोत्र ,ध्यान ,पूजा विधि ,मन्त्र और कवच -इन सबसे वह तंत्र शास्त्र संपन्न हो .जिस मन्त्र से पापीजन मुझ से विमुख हो सकते हैं ,उसे स्पष्ट नहीं करना चाहिए .हाँ हज़ारों में कोई एक भी मेरा सच्चा उपासक मिल जाए तो उसके प्रति गोपनीय मन्त्र का भी उदघाटन कर देना .मेरे मन्त्रों के प्रभाव से पुण्यात्मा बन कर मनुष्य मेरे धाम में पहुंचेंगे .यदि मेरे तंत्र शास्त्र का उदघाटन नहीं हो सकेगा तो किसी को भी गोलोक में रहने की सुविधा नहीं मिल सकेगी .सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड निष्फल हो जाएगा .पर यह ठीक नहीं है .इसलिए तुम प्रत्येक सृष्टि में पांच प्रकार के मनुष्यों का निर्माण करो .इससे कितने पुरुष धरातल पर रहेंगे और बहुतों को स्वर्ग में भी स्थान मिल जाएगा .यदि शंकर देव सभा में ऐसा करने के लिए दृढ प्रतिज्ञा करते हैं तो उन्हें तुरंत मेरे दर्शन हो जाएंगे ."
 
आकाश वाणी के द्वारा  ऐसा कह कर श्री हरि शांत हो गए .प्रसन्न होकर ब्रह्मा  जी ने ज्ञानियों में सब से बड़े भगवान् शिव से भगवान् कृष्ण की आज्ञा  का पालन करने का अनुरोध किया .भगवान् शिव ने तुरंत गंगाजल अपने हाथ में ले कर दृढ प्रतिज्ञा की ,-"भगवान् श्रीकृष्ण की आज्ञा के पालन के लिए मैं विष्णु की माया और मन्त्रों से संयुक्त और वेदों के सार स्वरूप एक उत्तम शास्त्र (तंत्र शास्त्र ) की रचना करूंगा ." ज्ञान के अधिष्ठाता शिव भगवती जगदम्बा के मन्त्रों से संपन्न उत्तम तंत्र शास्त्र के निर्माण में लग गए ."प्रतिज्ञा पालन के लिए मैं वेद के सार, महान तंत्र शास्त्र का निर्माण करूँगा '-यह विचार उनके ह्रदय में गूँजने लगा. उन्होंने अपना विचार व्यक्त किया की यदि कोई मनुष्य गंगा का जल हाथ में लेकर प्रतिज्ञा करेगा और फिर उस प्रतिज्ञा का पालन नहीं करेगा तो वह काल सूत्र नामक नरक में गिरेगा और ब्रह्मा की आयु तक वहीं रहेगा .जब भगवान् शिव इस प्रकार अपनी बात कह चुके  तो अकस्मात् परमब्रह्म परिपूर्ण तम भगवान् श्रीकृष्ण भगवती राधा के साथ वहां प्रकट हो गए .उन पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण के दर्शन कर ने पर देवताओं के हर्ष की सीमा नहीं रही और वे सब उनकी स्तुति करने लगे .अत्यंत आनंद में भरकर फिर से सब ने उत्सव मनाया .समय अनुसार भगवान् शंकर ने मुक्तिदीप अर्थात मुक्ति को प्रकाशित करने वाले सात्विक तंत्र शास्त्र का निर्माण किया . पूर्णब्रह्म भगवान् श्रीकृष्ण ही इस प्रकार जल रूप होकर गंगा के रूप में प्रकट हुए . लिंग पुराण,योनी तंत्र ,ज्ञान संकालिनी तंत्र और हठ योग प्रदीपिका जैसे ग्रंथों में भगवान् शिव और माता पार्वती के वार्तालाप के माध्यम से तंत्र शास्त्र का ज्ञान मनुष्यों के लिए प्रकाशित किया गया है . भगवान् शिव और उनकी अर्धांगिनी देवी पार्वती ने पति पत्नी के सम्बन्ध की आध्यात्मिक गरिमा को प्रकाशित कर सभी मनुष्यों को भोग पूर्वक मोक्ष पाने का सरल विज्ञान समझाया है.

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