ardhangini
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Thursday 13 June 2013
परस्त्री
गमन
ब्रह्म
वैवर्त
पुराण
में
कहा
गया
है
की
जिस
पुरुष
का
चित्त
पराई
स्त्रियों
में
लगा
हो
वह
पुरुष
सभी
कर्मोंके
लिए
अपवित्र
होता
है
.
उसे
अपने
पाप
कर्म
का
फल
भुगतना
पड़ता
है
और
संसार
में
निंदा
प्राप्त
होती
है
.
जिस
पुरुष
का
घर
माता
और
पत्नी
से
सुशासित
नहीं
हो
उसे
जंगल
में
चले
जाना
चाहिए
क्योंकि
उसके
लिये
घर
और
जंगल
एक
समान
हैं
.
कार्तिकेय
ने
इसी
पुराण
में
कहा
है
की
-
जिसका
स्तनपान
किया
हो
,
जिस
के
गर्भ
में
निवास
किया
हो
,
जिसने
भोजन
दिया
हो
,
जो
गुरु
की
प्रिया
हो
,
देव
पत्नी
,
पिता
की
पत्नी
,
कन्या
,
गर्भिणी
स्त्री
,
बहन
,
पुत्र
की
पत्नी
,
सास
,
नानी
-
दादी
,
भाई
की
पत्नी
,
मौसी
,
बुआ
,
मामी
ये
सोलह
प्रकार
की
स्त्रियाँ
मनुष्यों
की
वेद
के
अनुसार
माता
होती
हैं
.
इसी
पुराण
में
देवी
पार्वती
ने
ऋषि
दुर्वासा
से
कहा
है
की
जो
पुरुष
संतान
रहित
युवती
,
कुलीन
और
पतिव्रता
स्त्री
को
त्याग
कर
सन्यासी
,
ब्रह्मचारी
या
यति
हो
जाता
है
या
व्यापार
करने
के
लिए
दूर
चला
जाता
है
,
मोक्ष
के
लिए
या
जन्म
का
खंडन
करने
के
लिए
तीर्थवासी
या
तपस्वी
हो
जाता
है
उसे
मोक्ष
की
प्राप्ति
नहीं
होती
.
उसके
धर्म
का
नाश
निश्चित
रूप
से
होता
है
.
पत्नी
के
श्राप
के
कारण
उसे
मरने
पर
नरक
में
जाना
पड़ता
है
.
देवी
पार्वती
ने
ऋषि
दुर्वासा
को
आदेश
दिया
की
वह
कृष्ण
की
बहन
एकान्षा
से
विवाह
कर
उसका
धर्मपूर्वक
पालन
करें
जिसका
पालन
ऋषि
ने
किया
.
मनुस्मृति
में
तो
यहाँ
तक
कहा
गया
है
की
जो
पति
ऋतुकाल
में
अपनी
पत्नी
को
संतुष्ट
नहीं
करता
वह
गृहस्थ
धर्म
का
अपालन
करता
है
और
उसे
आर्थिक
दंड
देना
चाहिए
.
सभी
देशों
का
इतिहास
साक्षी
है
की
अनेकों
धनी
और
सत्ताशाली
पुरुषों
ने
परस्त्रीगमन
स्वेच्छा
से
किया
है
.
यहाँ
तक
की
भारतीय
पुराण
आदि
ग्रंथों
के
अनुसार
ऋषि
और
देवता
तक
इस
कर्म
में
लिप्त
हुए
हैं
.
पर
यह
भी
सच
है
की
उनको
इसका
दुखद
परिणाम
भी
भुगतना
पड़ा
है
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