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Thursday 13 June 2013


श्रापित कृष्ण
राधा कृष्ण का शाश्वत लोक है गोलोक. जहाँ कृष्ण अकेले ही रहते हैं. जब उन्हें सृष्टि की इच्छा होती है तो वह अपने बाए अंग से राधाजी को उत्पन्न करते हैं. वह कृष्ण के रमण करने की इच्छा से उत्पन्न होने के कारण रासमंडल में प्रकट होती हैं . वह कृष्ण का सम्मान करने के लिए उनके मार्ग में फूल बिखेरने के लिए दौड़ती है अतः उन्हें कृष्ण ने राधा नाम दिया है. कृष्ण की अर्धांगिनी के रूप में वह सारे संसार की जननी है. कृष्ण अपनी सुरक्षा  के लिए उनकी सोलह उपचारों से पूजा कर उनके मन्त्र तथा कवच को अपने कंठ में धारण करते है .
राधा के संकल्प से उत्पन्न सभी गोपियाँ उनकी सेवा करती हैं . कृष्ण के आकर्षण से मोहित हो कर, ह्रदय के  असहाय होने पर अनेक गोपियों ने उन्हें पति रूप में पाने के लिए तपस्या की.शोभा, प्रभा, शांति, सुशीला आदि कई गोपियों ने परमात्मा कृष्ण को पति रूप में प्राप्त किया. किन्तु राधाजी के क्रोध के कारण कोई भी गोपी शरीर धारण कर गोलोक में नहीं रह पायी और भगवान् कृष्ण ने उन्हें अशरीरी बना कर सृष्टि में अलग अलग व्यक्ति,गुण तथा स्थानों में बाँट दिया. एक बार विरजा नामकी एक गोपी ने परमात्मा कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की. उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान् कृष्ण ने उसे पत्नी रूप में स्वीकार किया.
किन्तु राधा की गोपियों ने कृष्ण के इस गुप्त सम्बन्ध  की सूचना राधाजी को दे दी. क्रोधित  राधाजी अपनी गोपियों की सेना के साथ भगवान् कृष्ण की खबर लेने विरजा के आश्रम में पहुंची. उनके आने की भनक लगते ही कृष्ण तुरंत अदृश्य हो गए . राधा के भय से विरजा ने भी योग बल का सहारा ले कर शरीर त्याग दिया. कृष्ण के द्वारपाल श्रीदामा ने राधा के क्रोध से श्रीकृष्ण को बचाने के लिए राधा को द्वार पर रोकने का प्रयास किया. अतः राधाजी कृष्ण के साथ श्रीदामा पर भी भयानक क्रोध करने लगी. विरजा ने तुरंत नदी का रूप धारण कर लिया और वह गोलोक में एक नदी के रूप में बहने लगी.
जब राधाजी को कृष्ण और विरजा एक साथ नहीं दिखे तो वह वापस अपने महल में आगईं लेकिन क्रोध के कारण उनका अंग अंग फड़क रहा था. राधा के जाते ही कृष्ण विरजा नदी के तट पर जाकर रोने लगे और बोले ,-"प्रेयसियों में अति श्रेष्ठे ! शीघ्र मेरे पास जाओ .हे सुंदरी! तुम्हारे बिना मैं कैसे जीवित रहूँगा?मेरे आशीर्वाद से परम सुन्दरी स्त्री बन जाओ.अब उत्तम शरीर धारण कर जल से निकल आओ .मैंने तुम्हे आठों सिद्धियाँ प्रदान की हैं .' यह सुनकर विरजा ने राधा के समान सुन्दर रूप धारण किया और श्रीकृष्ण के सामने प्रकट हो गयीं . प्रभु ने एकांत में उस के साथ विहार किया  और समय आने पर विरजा ने सात पुत्रों को जन्म दिया .एक बार जब वह भगवान् के साथ विहार कर रही थी, उनका छोटा पुत्र अपने बड़े भाइयों से भयभीत होकर रोता हुआ आया  और माता की गोद में बैठ गया. पुत्र को भयभीत देख कर श्रीकृष्ण ने विरजा का त्याग कर दिया और राधा के पास चले गए. विरजा ने पुत्र को गोद में बिठा कर शांत किया और जब भगवान् श्रीकृष्ण को वहां नहीं पाया तो क्रोध में आकर पुत्र को श्राप दे दिया,-"तुम खारे सागर होजाओ !कोई भी तुम्हारा  जल नहीं पिएगा ". फिर उसने दूसरे पुत्रों को भी श्राप दे दिया ,-"मूढ़ !तुम लोग भूतल  पर जाओ .जम्बुद्वीप में तुम्हारी स्थिति एक साथ नहीं रह जायेगी .अलग अलग द्वीपों में रह कर तुम नदियों के साथ क्रीडा करोगे ." दुखी होकर सातों पुत्र माता के पास आये . भक्ति के साथ  सर झुका कर उन्होंने माता के श्राप को स्वीकार किया और पृथ्वी पर चले गए . पति और पुत्रों के वियोग में विरजा दुखी होकर बेहोश हो गयी . उसे  दुखी जानकार भगवान् कृष्ण उसके पास आये और बोले ,-" मैं नित्य तुम्हारे स्थान पर अवश्य आऊंगा .राधा के समान ही तुम मेरी प्रिया होगी  और मेरे वरदान से नित्य अपने पुत्रों को देखोगी". राधा की सखियों ने कृष्ण को ऐसा कहते हुए सुना और जाकर उन्हें सब कुछ बता दिया. राधा तुरंत कोपभवन में चली गयीं.
जब भगवान् कृष्ण राधा को मनाने के लिए आये तो उनका क्रोध और भी भड़क गया. श्रीदामा के साथ भगवान् दरवाजे पर खड़े थे. उन्हें देखते ही राधा बरस पडीं ,-"हे  हरि !गोलोक में हमारे समान तुम्हारी अनेकों पत्नियां हैं.उन्ही के पास जाओ .मुझ से तुम्हारा क्या प्रयोजन है ?तुम्हारी विरजा प्रेयसी,जो मेरे भय के कारण नदी रूप हो गयी है ,तुम्हे बहुत प्रिय है क्योंकि तुम अब भी उस के पास जाते हो .अच्छा हो की तुम उसी के किनारे अपना घर  बनालो  और सब समय वहीं रहो या वह नदी हो गयी है तो तुम (नद )नाले बन जाओ  क्योंकि नदी -नद का समागम हितकर होगा .शयन -भोजन में सुख के होने से अपनी जाति  में परम प्रीती होती है .अहो एक नदी के साथ देव शिरोमणि क्रीडा कर रहे हैं ,इसे सुनते ही भले लोग मुस्कुराने लगेंगे .क्या जो तुम्हे सर्वाधीश्वर कहते हैं,ठीक से जानते हैं कि सब जीवोंका आत्मा होकर भी भगवान् नदी के साथ विहार करना चाहते हैं !" इतना कह कर राधा भूमि पर पडी रहीं .उनकी अनेकों सेविकाएँ अनेक प्रकार से उनकी सेवा कर रही थीं . हाथ में बेंत लिए उनकी द्वार पालिकाओं  ने कृष्ण को अन्दर जाने से रोक दिया . कृष्ण को वहीं खडा देख कर राधा ने फिर अपना  क्रोध उन पर प्रकट किया,- "हे कृष्ण ! हे विरजाकांत !मेरे सामने से चले जाओ . हे चंचल ! हे रतिचोर !मुझे क्यों दुःख देते हो ?शीघ्र पद्मावती या मनोरमा के यहाँ जाओ  या रूपवती वनमाला के पास चले जाओ . हे नदी के पति! हे देवों के गुरु के गुरु ! मैंने तुम्हे भली भाँती जान लिया है .अतः तुम्हारा कल्याण इसी में है कि मेरे यहाँ से शीघ्र चले जाओ .क्योंकि हे लम्पट! मनुष्यों की भाँती ही तुम्हारा सदैव का व्यवहार रहा है .इसलिए तुम यहाँ गोलोक से जाकर भारत में मनुष्य योनी में जन्म लो. हे सुशीले! हे शाशिकले! इस धूर्त को यहाँ से शीघ्र हटाओ .इसका यहाँ क्या प्रयोजन है?"sudama’s shraap
राधाजी के इसी श्राप के कारण समय आने पर उन्हें पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में यशोदा का पुत्र बन कर जन्म लेना पडा. राधा ने क्रोध शांत होने पर अपने भविष्य का जब चिंतन किया जिसमे उन्हें कृष्ण से अलग रह कर पृथ्वी पर किसी अन्य पुरुष की पत्नी बनना था तो उनके शोक की सीमा रही. लिकिन भगवान् कृष्ण ने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान देकर शांत किया -"सारा ब्रहमांड आधार और आधेय के  रूप में बनता है.आधार से अलग आधेय का होना संभव नहीं है.फल का आधार फूल है ;फूल का पत्ता ;पत्तें का तना;तने का वृक्ष ;वृक्ष का अंकुर ;अंकुर का बीज ;बीज का भूमि ;भूमि का शेषनाग ;शेष का कश्यप ;कश्यप का वायु और वायु का आधार मैं हूँ .मेरा आधार तुम हो क्योंकि मैं सदा तुम्ही में स्थित रहता हूँ .तुम शक्ति समूह और मूल प्रकृति ईश्वरी हो.शरीर रूपिणी और तीन गुणों का आधार हो .मैं तुम्हारा आत्मा निरीह हूँ और तुम्हारे संपर्क से चेष्टा करने वाला  होता हूँ .पुरुष से वीर्य उत्पन्न होता है ,वीर्य से संतान उत्पन्न होती है . उन दोनों की आधार स्त्री प्रकृति का अंश है .बिना देह के आत्मा और बिना आत्मा के देह कहाँ हो सकता है ?दोनों की ही प्रधानता हैं क्योंकि बिना दो के संसार कैसे चल सकता है ?राधे! संसार के बीज रूप हम दोनों में कोई भेद नहीं है.जहां आत्मा है वहां देह है .वे दोनों एक दूसरे से अलग नहीं हैं . जिस तरह दूध में धवलता ;अग्नि में दाहिका शक्ति ;भूमि में गंध और जल में शीतलता हैउसी तरह हम तुम में है.हम में भेद नहीं है.मेरे बिना तुम निर्जीव हो जाती हो और तुम्हारे बिना मैं अदृश्य हो जाता हूँ.यह निश्चित हैं कि तुम्हारे बिना मैं सृष्टि करने में समर्थ नहीं होता हूँ . जैसे कुम्हार मिट्टी के बिना घड़ा और सुनार सोने के बिना गहने नहीं बना सकता उसी तरह मैं तुम्हारे बिना असमर्थ हूँ .जिस प्रकार आत्मा नित्य है उसी प्रकार तुम प्रकृति नित्य हो .तुम समस्त शक्ति संपन्न ,सब की आधार और सनातनी हो .तुम मुझे प्राणों से भी अधिक प्रिय हो .सभी देव और देवियाँ मेरे समीप रहते हैं किन्तु तुम मुझे सब से प्रिय होतीं तो मेरे वक्ष स्थल में कैसे विराजमान हो सकती थी ?....महादेवी !जिस प्रकार तुम हो वैसा ही मैं भी हूँ ..." उन्हें आश्वासन देकर भगवान् ने उन्हें पृथ्वी पर वृषभानु  की  पुत्री के रूप में जन्म लेने के लिए विदा किया .

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