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Thursday 13 June 2013


मनु स्मृति  में पति के कर्त्तव्य 
पुरानों के अनुसार चौदह मनुओं की संताने ही प्रत्येक मन्वंतर में मानव समाज की रचना करती हैं . मनाली नामक स्थान से ही इस मन्वंतर में पृथ्वी पर मानव समाज का आरम्भ हुआ जहां आज भी वसिष्ठ ऋषि का आश्रम स्थित है .मनु ने मानव समाज की व्यवस्था पर अपने मत दिए हैं . स्त्रियों के बारे में उनका मत इस प्रकार है -
 
"पिता ,देवर,भाई और पति को योग्य हैं की वे स्त्रियों की सदा पूजा करें ,उन्हें प्रसन्न रखें .जिन्हें कल्याण की इच्छा हो वे कभी स्त्रियों को क्लेश दें .जिस घर में स्त्रियों का सत्कार होता है ,विद्या युक्त पुरुष देव संज्ञा धारण करके आनंद से क्रीडा करते हैं .जिस घर में स्त्रियों का सत्कार नहीं होता वहां सब क्रिया निष्फल है .जिस घर में स्त्री शोकाकुल हो वह नष्ट हो जाता है .जहां स्त्री संतुष्ट हो वह घर सब प्रकार से समृद्ध होता है .जो विवाहिता स्त्री पति ,माता ,पिता ,भाई ,देवर से दुखी होकर घर वालों को श्राप देती है वे जैसे विष पान से कोई मर जाता है वैसे ही नष्ट हो जाते हैं .यह स्वाभाविक है की स्त्री -पुरुष का संसर्ग दोष लगाता है .अतः बुद्धिमान व्यक्ति स्त्रियों के साथ व्यवहार में कभी असावधानी नहीं करते .संसार में स्त्रियाँ काम ,क्रोध के वशीभूत होने वाले अविद्वान अथवा विद्वान को भी उसके मार्ग से उखाड़ने /पथ भृष्ट करने में निश्चय पूर्ण समर्थ हैं .ऐश्वर्य की कामना वाले पुरुषों को योग्य है की वे स्त्रियों को सत्कार द्वारा प्रसन्न रखें .जिस कुल में भार्या से भरता और भरता से भार्या संतुष्ट हो वहीं कल्याण होता है .स्त्री की प्रसन्नता से सब कुल प्रसन्न होता है और उसकी अप्रसन्नता से सब दुःख दाई हो जाता है .स्त्री को कोई भी दमन पूर्वक नहीं रख सकता .स्त्री के लिए पथ छोड़ देना चाहिए .पत्नी से विवाद नहीं करना चाहिए .पति ऋतुकाल में स्त्री समागम करे और परायी स्त्री का त्याग करे .पत्नी अन्य पुरुषों से पृथक रहे.पति स्त्री व्रती रह कर ऋतुकाल में पर्व के दिन छोड़ कर पत्नी को रितुदान दे .जो पति ऋतुकाल में पत्नी को संतुष्ट नहींकरता वह गृहस्थ धर्म का अपालन करता है और उसे दंड देना चाहिए किन्तु कामना रहित स्त्री के साथ गमन नहीं करना चाहिए .कोई भी जबरदस्ती या दवाब के साथ स्त्रियों की कुसंग से रक्षा नहीं कर सकता .किन्तु धन की व्यवस्था ,व्यय की ज़िम्मेदारी ,घर के सामान की शुद्धि ,धार्मिक अनुष्ठान स्वाध्याय,भोजन पकाने,घर की वस्तुओं की देखभाल आधी कार्यों से ही उनकी रक्षा की जा सकती है .क्योंकि विश्वसनीय पिटा ,माता ,पति आधी पुरुषों द्वारा घर में रोक कर राखी हुयी स्त्रियाँ भी असुरक्षित हैं -बुरायिओं से बच नहीं पातीं .जो अपनी सुरक्षा आप आत्मनियंत्रण से करती हैं वे ही सुरक्षित रहती हैं ." इस प्रकार मनु महाराज ने स्त्रियों की स्वाभाविक दुर्बलता और उनके साथ शान्ति पूर्ण जीवन जीने का मार्ग बताया है . पुराण  में देवी और अन्य पुरुषों के मध्य युद्ध होने पर ज्ञानियों ने देवियों को स्तुति और भेंट से प्रसन्न कर जीतने का परामर्श दिया है क्योंकि तर्क वितर्क और हिंसा से उन्हें कभी नहीं जीता जा सकता
Mnsa aurdhanvantari yuuddh
भीष्म पितामह ने भी धर्म राज युद्धिष्ठिर  से महाभारत में कहा है की जो किसी कन्या को बल पूर्वक वश में करके उसका उपभोग करते वे पापी अंधकारपूर्ण नरक में पड़ते हैं ...अधर्म के रास्ते से जो धन आता है उससे कोई धर्म नहीं होता .पिता ,भाई ,ससुर और देवर को चाहिए की कन्या को वस्त्र ,आभूषण आदि देकर उसका सम्मान  करें .यदि स्त्री की रूचि पूर्ण नहीं की जाए तो वह पुरुष को प्रसन्न नहीं कर सकती और तब पुरुष की संतान वृद्धि नहीं हो सकती  अतः स्त्रियों का सदा सत्कार और प्यार करना चाहिए .जिस कुल की बहु बेटियों को दुःख मिलने के कारण शोक होता है उस कुल का नाश हो जाता है .वे नाराज होकर जिस घर को श्राप देती हैं उनकी शोभा ,समृद्धि और संपत्ति का नाश जो जाता है .महाराज मनु ने स्त्रियों को पुरुषों के अधीन कर के कहा था स्त्रियाँ अबला ,ईर्ष्यालु ,मान चाहने वाली ,कुपित जोने वाली ,पति का हित चाहने वाली , और विवेक शक्ति से हीन होती हैं तब भी वे सम्मान  के योग्य हैं अतः तुम उनका सदा सत्कार करना .क्योंकि स्त्री जाते ही धर्म की प्राप्ति का कारन है .तुम्हारी परिचर्या और नमस्कार स्त्री के ही अधीन है .संतान की उत्पत्ति ,उनका पालन ,और लोक यात्रा का प्रसन्नता पूर्वक निर्वाह उन्ही पर निर्भर है .यदि तुम लोग उनका सम्मान करोगे तो तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जायेंगे /कुमारी अवस्था में उनके रक्षा पिता करता है ,जवानी में पति और वृद्ध होने पर पुत्र उसके रक्षा करता है .स्त्री को कभी स्वतन्त्र नहीं रहने चाहिए ..स्त्रियाँ ही घर की लक्ष्मी हैं ,पुरुष को उनका भली भाँती सत्कार करना चाहिए .वश में रख कर पालन करने से स्त्री लक्ष्मी का स्वरूप बन जाती है .
 

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